द्रौपदी का संताप - भाग २/४
द्रौपदी का संताप - भाग २/४
पर द्रौपदी अब और मौन ना रहेगी,
संताप सारा अनवरत वो संसार से कहेगी।
मैंने तो बस अर्जुन को ही वर चुना था,
बोलो माता क्यों मुझे पांचों संग बुना था,
बांट दो बराबर मैंने बस इतना ही सुना था,
कह दो वह सच भी जो मुझे अनसुना था।
बोलो कृष्ण आज द्रौपदी मांगती जवाब,
अपने सारे कष्टों का कर रही वो हिसाब,
क्यों कौरवों की सभा तब सारी मौन थी,
उन्हें भी था पता कि मैं उनकी कौन थी।
हो रहे थे नग्न वो या मैं नग्न हो रही थी,
बता दो सखा तुम्ही मैं तो मग्न रो रही थी,
ना मुझे सुध काय की ना वेश की हो रही थी,
मैं तो मन में बीज इस पुत्र का बो रही थी।
हे धर्मराज आज मुझ को यह बता दो,
मैं हूं अर्धांगिनी या वस्तु यह भी जता दो,
क्या अधिकार था तुम मुझे द्यूत में चढ़ा दो,
वस्तुओं संग विनमय के लिए आगे बढ़ा दो।