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Aniruddhsinh Zala

Abstract

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Aniruddhsinh Zala

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दोस्ती दिल से

दोस्ती दिल से

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दोस्ती ऐसी गहन है, जो बिन कहे ही साथ देती है

दिल मे दोस्त को उतारकर, खुशी के कई पल सजा देती है


गहराई दोस्ती की उनकी कुछ शरारतें बता देती है

जैसे हाजरी इलायची की चाय खुद बता देती है


बेताब आँखे ही तो, उस दोस्त की कमी जता देती हे

धडकनी धडकने भी उसकी, पल पल याद दिला देती है


निस्वार्थ भाव से ही तो हुआ करती है सदा ये गहन दोस्ती

प्यारे दोस्त की याद मे, क अलग दुनिया ही सजा देती है


कभी तो मजा लेकर देखो इस निस्वार्थ दोस्ती का दोस्तो

"राज" के दिल मे तो दोस्ती, हरपल नया उमंग प्रगटा देती है।

         


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