दोहरा रूप
दोहरा रूप
मैं नारी हूँ, अपने हक का सम्मान मांगती हूँ,
और चाहती ही हूँ क्या थोड़ा सा अधिकार मांगती हूँ।
चेहरे पर चेहरा ओढ़ा हैं मैंने शायद इसीलिए
अब तक अपनी पहचान मांगती हूँ।
हो अपना सा घर संसार, यही सपना हो साकार
रब से ये दुआ मांगती हूँ।
पर लाडो इसमें तू ना आना, मैं तो अपने कुल के लिये
कुल का चिराग मांगती हूँ।
देती हूँ जीवन लेकिन जिंदगी उधार मांगती हूँ।
मैं नारी हूँ'............
रिश्तों से बंधी रिश्तों मैं ही उलझ गई
इस उलझन की घुटन चन्द सांसो का प्यार मांगती हूँ।
बनी सास जब बहु को कैद किया रिवाजों में ,
माँ बन बेटी के लिये खुला आसमान मांगती हूँ।
अपने परों को खुद ही कतरे हैं,
फिर उनका उपचार मांगती हूँ।
मैं नारी हूँ___
रख के खुद को ही पिंजरे में,
खुद पर ही खुद पहरे बिठाये है मैंने ,
फिर न जाने किस से अपना अधिकार मांगती हूँ।