दोहे
दोहे
अहंकार क्या कीजिए,अहंकार में है नाश।
अहंकार के कारणें,भई होय जल्द विनाश।१।
अहंकार में लुट गये,धन वैभव बल वंश।
अहंकार में मिट गये, रावण बाली कंस।२।
अहंकार का लग गया,जिस मानस को दंश।
उस मानस में कब बचा,दया धर्म का अंश।३।
फ़ितरत काले काग की,जान न पाया हंस।
धूर्त के संग दोस्ती में,समझो किला ध्वंस।४।
ढाई अक्षर है प्रेम के,है ढाई का ही प्यार।
ढाई अक्षर ही इश्क के,मुहब्बत साढ़े चार।५।
प्रेम अक्षर में है भावना,प्यार में मिले स्नेह।
इश्क में मौत कबूल है,मुहब्बत में सब खेह।६।
जिसकी है ये डुगडुगी,वह सही बजावै ताल।
कोऊओर बजावै न बजै,बजै तो ताल-बेताल ।७।
जल से उठी तरंग जो,वो है पानी का भाग।
गिर पानी में पानी हुई,या फिर हो गई झाग।८।
हांडी पूछे चूल्हे से,बता तुझ में है क्यूं आग।
चूल्हा बोला हांडी से,तुम भी इस का भाग।९।
झूठ का फल है बकबका,झूठ है अ-स्वाद।
सच्च का फल है मिठला,सच्च में है स्वाद।१०।
--एस.दयाल सिंह--