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Sudhir Srivastava

Abstract

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Sudhir Srivastava

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दोहा -गुरु ज्ञान

दोहा -गुरु ज्ञान

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जीवन में हम सब करें, कुछ  तो  ऐसा  काम।
जीवन सुरभित हो उठे  ,हर्षित हों घनश्याम।।

भौतिक  जीवन  में  बहुत, मिलते  हैं  संताप।
गुरू कृपा से दूर हो, तन मन का अभिशाप।।

गुरू  कृपा से  ही  बने,     उत्तम  जीवन  राग।
मुश्किल कितनी हो बड़ी, मत उससे तू भाग।।

गुरू  कृपा  से  ही  मिले, जीवन  पंथ  अनन्य।
चरण पकड़ जा गुरु शरण , सांसें होगी धन्य।।

मातु पिता की सीख का, मत करना अपमान।
गुरु शिक्षा  को  संग  में, भवतारण  ले  मान।।

मातु पिता  गुरु  पूर्णता,  इतना  लीजै  जान।
शीष चरण इनके झुके, यही आज का ज्ञान।।

कितना भी कर लीजिए, महिमा गुरू बखान।
फिर भी सारा जग रहे, निश्चित  ही  अंजान।।

गुरु चरण में स्वयं को, सौंप दीजिये आप।
बस इतना ही जानिये, मन में रहे न पाप।।

मन में रखते जो सदा, अपने गुरु का ध्यान।
भव बाधा से मुक्त रह, मुश्किल हो आसान।।

सुधीर श्रीवास्तव


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