दो वक़्त कि रोटी
दो वक़्त कि रोटी
शहर मे रोज ना जाने
कितना खाना कचरे में फेंक दिया
जाता है,
रोड पे फेंक दिया जाता है,
वहीं देश का गरीब, मजदूर, किसान
बेचारे दो वक़्त कि रोटी के लिये
आत्महत्या कर लेते है !
क्योंकि दूसरों के हिस्से का खाना
हम ही नुकसान कर
देते हैं,
अन्न का अनादर ना करें,
जरूरत से ज्यादा खाना ना ले,
आवश्यकता जितनी हो उतना ही ले !
आपके अकेले के प्रयास से
कितनों को जिंदगी मिलेगी,
आपने कभी सोचा है,
दो वक़्त कि रोटी से आप
दो परिवारों को जिंदगी देंगे !
खाना फेकने से अच्छा
गरीब, लाचार, असहाय लोगों तक
पहुंचाये,
आपको बहुत ख़ुशी होगी ऐसा करके,
किसी ना किसी को तो ये
करना होगा,
क्यों ना हम ही इसकी शुरुआत करें !