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Dhan Pati Singh Kushwaha

Abstract

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Dhan Pati Singh Kushwaha

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दो नहीं ग्यारह

दो नहीं ग्यारह

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पाए हैं संस्कार जिन्होंने, सहयोग भावना रखते जो

एक और एक बनाते ग्यारह, नहीं बनाते हैं वे दो।


सब है प्यारे अपने जैसे, जिनको सबकी है परवाह

स्वार्थ भाव नहीं व्यापे जिनको, चुनते परमार्थ की राह।

खुद करते बर्दाश्त धूप पर , देते हैं औरों को छांह

करें त्याग बिन किसी लोभ के,चाह प्रशंसा की करें न वो।

पाए हैं संस्कार जिन्होंने..।..


कलियुग में संगठन शक्ति है, इसका सदा रखें हम ध्यान

ॠक्ष-कीस जब किए संगठित,प्रभु ने मारा दनुज महान।

करें संगठित हम हर जन को, करने पूर्ण जगत कल्यान

परहित जीवन करें न्योछावर, अमर जगत में होते हैं वो।

पाए हैं संस्कार जिन्होंने..।


चाहे हो निंदा या स्तुति हो,पर सन्मार्ग की हैं  चुनते राह।

सबकी खुशियों में खुश होते,पर गम का दु:ख जिन्हें अथाह।

जो सम रहते हैं सुख दुख में, धूप-छांव की नहीं परवाह।

एक और एक बनाते ग्यारह, नहीं बनाते हैं वे दो।

पाए हैं संस्कार जिन्होंने..।


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