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Dhara Viral

Inspirational

3.4  

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दो महाप्राण

दो महाप्राण

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क्या शब्द दूं मैं इनके त्याग के सम्मान को,

मैं कैसे दीप दिखाऊं साक्षात सूर्य भगवान को


जो इस जीवन रुपी पुराण के महाप्राण हैं,

वो एक सैनिक तो एक किसान है,


आधार स्तंभ हैं ये तो श्वास रुपी जीवंत मिनारों के,

साक्षात प्रमाण हैं प्रभु के भिन्न-भिन्न अवतारों के,


सदैव पवित्र भाव और कुछ कर गुजरने की क्षमता,

निस्वार्थ देश प्रेम निधि और कर्म में सदैव निश्छलता,


एक इस धरा की गोद से सोना उगाकर,

तो दूजा इस धरा के सम्मान में प्राण गंवाकर,


जीवन की हर श्वास जन-जन को समर्पित करते हैं,

अपनी हर आशा और स्वप्न सिर्फ देश को अर्पित करते हैं,


एक कर्त्तव्य है हमारा भी जो हमें भी पूर्ण करना है,

 हर जवान और हर किसान का सदैव सम्मान करना है,


प्रभु के कर-कमलों में आप हेतु सदैव वंदन करते हैं

और आपके निस्वार्थ तप को नतमस्तक नमन करते हैं।।


            



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