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संजय असवाल "नूतन"

Inspirational

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संजय असवाल "नूतन"

Inspirational

दो कदम बुढ़ापे की ओर..!

दो कदम बुढ़ापे की ओर..!

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माह बीते साल गुजरे 

बीत गए जवानी के दिन 

अब निकल आया हूं यारों 

मैं दो कदम बुढ़ापे की ओर...।

जिम्मेदारियाँ का बोझ लादे 

कब शाम जिंदगी की ढल गई

ना रही खबर मुझे मेरे मन की

ये हाथों में रेत सी फिसल गई...।

रात दिन कुडता रहा मैं 

जिनके अरमानों को सीने से लगाए 

थी यही मेरी कोशिश न छूटे 

कोई कसर उनकी परवरिश में....।

जिन्हें सींचा खून पसीने से 

वो बगिया भी अब खिल गई 

कतरा कतरा खुदका देकर

वो खिलखिला के आगे बढ़ गई.....।

तिनका तिनका जोड़ कर 

जो एक घरौंदा था मैंने बनाया 

उम्मीदों के सपने देकर उसको 

रात दिन मैंने उसे सजाया...।

उड़ गए परिंदे बसेरा छोड़ कर 

अपनी अपनी मंजिल को 

फर्ज किया मैने वो पूरा 

जो मेरे इस भाग्य में आया।

अब तन्हा हूं अकेला हूं 

बेबस और लाचार भी

अब निकल आया हूं यारों 

मैं दो कदम बुढ़ापे की ओर ..।

ये बुढ़ापे की बदनसीबी

ले आई मुझे किस दौर में,

चेहरे की ये झुर्रियां भी अक्सर 

करती मुझसे अनगिनत सवाल भी।

झुकी कमर आंखों पे चश्मा 

टटोलता मन को बेहिसाब क्यों?

उम्र के इस दौर में अब 

तुझे जिंदगी से इतना लगाव क्यों...?

ना सुन सकता ना बोल पाता

कदम भी अब लड़खड़ाते हैं

अपनों से दरकिनार होकर

चार पल जिंदगी के मोहताज है तू।

बस चंद यादें रोज पुकारती हैं 

छेड़ती हैं मेरे इस जहन को

जिंदगी भी सिखा गई मुझे

एक सीख इस ढलती उम्र में।

उम्र का आखिरी पड़ाव है 

न कर इससे बेहिसाब सवाल तू

जिंदगी ये क्षण-भंगुर अब

तू इतना मुरझाए घबराए क्यों...???


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