दक्षता
दक्षता
दक्षता आती है ,हर पल
मनोयोग से,या संजोग से?
अपने से अभ्यास से
सही लक्ष्य चुनने से।
कुछ तो जन्मजात
बाकी सब कहां से
कुछ यहां से
कुछ वहां से ।
अपने में हो गर अच्छा
वह तो बात, निराली
यहां भी ओर वहां भी
कोई भी हो सकता दक्ष
देखने सुनने की आदत
उल्टा भी इतना ही कठोर।
कृष्ण हो या कंश
युधिष्ठिर या दुर्योधन
अर्जुन हों या कर्ण
अपने में है सब दक्ष ।
दक्षता कार्यों में
दक्षता खेलने में
दक्षता पढ़ने में
दक्षता बोलने में ।
करना क्या है?
क्यो करना?
कैसे करना?
किसके लिए करना?
उत्तर दिमाग में रख?
सब एक से ही है
सब ठीक ही तो हैं ?
ऊर्जा का रूपांतरण है
जो बोया वही मिलेगा।
);">फिर क्यों कुछ अपयश
के हैं भागीदार!
करो गम्भीर विचार।
मन को साधने से
उनको दक्ष बनाने से
स्थिरता व संयम से
मन को सच्चा बना।
उसकी सघन साधना कर
बारम्बार अभ्यास कर
उद्देश्य जन भलाई का हो
तब ये बात बड़ी होती है।
स्वहित ,बात गौण होती है।
परोपकार की मिसाल बन
स्वहित अपने से समाहित है
सर्वहित भावना ,सब मिलता।
दक्ष बनने का हों अभ्यस्त
अपने से ही बुनी है ,जाती
वह सब जो तू है ,चाहता
पाना ,आना ,जाना, दिखाना
कर वह सब मुट्ठी में ,अपनी
दिलदार यार मन को संभाल
लगाम लगा , श्रेष्ठ सोच रख।
मन को छुरी बना,
जीवन की धुरी बना
उस पर सवार हो
उस पर नियंत्रण,बना
जो चाहे फिर उससे करा।
दक्षता आती है,,,
मनोयोग से, अभ्यास से
ना की संजोग से,यत्न कर
बार बार कर,दक्ष बन।