दिल्ली की होली
दिल्ली की होली
आँखों में टूटे ख़्वाबों के लाल क़तरे
रूह पर लगे ज़ख्म अभी तक हरे
दिल पर छाई इक स्याह वीरानी
थमता नहीं आँखों का पानी
ख़ौफ़ज़दा चेहरों का पीलापन
भरोसे पे लगी चोट का नीलापन
ज़िंदगी हो गई बेरंग
माज़ी है इतना बदरंग
कैसे हो सूरत खुशरंग
जब छूटा अपनों का संग
कैसा रंग कैसा गुलाल
बस्ती जब है बदहाल
ऐसी रंग-बिरंगी होगी
इस बार दिल्ली की होली।
