दिखावा
दिखावा
रंग बदलती दुनिया में झूठी शान और शौकत है,
अक्सर हम अपनों को छोड़ देते हैं।
आजकल तो घरवाली और बाहरवाली होती है,
दूसरों के लिए अपनो को हम खो देते हैं।
पत्थर को हम हीरा समझकर तराशते रहते हैं,
घर में आते हैं देर से, औ' कहते हैं ओवरटाइम किया था।
पर यह नहीं मालूम कि इस मकड़ी के जाल को जो हमने दिखाया है,
हम उसी में उलझ के रह जाते हैं।
हम अपना घर फूंक तमाशा खुद ही देखते हैं,
दिल को खिलौना समझ लिया है,
टूटने की कोई परवाह नहीं।
