दीवाली
दीवाली
मन में छल दम्भ और झूठ का अँधेरा,
सांप्रदायिकता के जहर ने नही छोड़ा,
हर तरफ भ्र्ष्टाचार का है बोलबाला,
वैमनस्यता ने सबको है खूब तोड़ा।
बाहर कितना भी प्रकाश फैलाये,
दीपावली को खूब धूमधाम से मनाए,
अज्ञानता का जो गहरा अँधेरा है,
बोलो उसको हम कैसे मिटायेंगे।
हाय रे दीवाली तू आई इस बार,
लेकर महंगाई की पड़ती हुई मार,
कैसे मनाये खूब धूमधाम से हम,
सूनी पड़ रही है इस बार बाजार।
हाय रे दीवाली घर को चमका दिया,
पड़ोस में है कूडे का अंबार लगा दिया,
ये कैसी सफाई का बोलो है त्योहार,
मन में भरे हुए हैं कलुषित विचार।