STORYMIRROR

Krishna Khatri

Abstract

2  

Krishna Khatri

Abstract

दीप मन का !

दीप मन का !

1 min
200


प्रज्वलित कर लो 

दीप मन का 

हो जाएगा रोशन 

सारा जहां 

लौ से लौ मिलाकर 

चलो तुम 

हो जाएगी तुम्हारी 

आसान डगर 

तब आएगी नज़र

सामने मंजिल भी 

अपने आप

चमक उठेगा हर चेहरा

दुबक जाएगा तम सारा

उजला हो जाएगा परिवेश !

          


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract