STORYMIRROR

Shiwani Kumari

Abstract

4  

Shiwani Kumari

Abstract

धूप

धूप

1 min
479

सुना है, शहर में तुम्हारे

धूप निकला है

मेरे खुशियों के गाँव में तो


अभी भी धुंध बिखरा है

सुना है, पंछियों के शोर पर

जगने लगे हो तुम


यहां इस बेबसी में बर्फ से

जमने लगे हैं हम !


अपने वादीयों के जश्न में

शामिल मुझे कर लो

एक अंजुरी भर धूप के

काबिल मुझे कर दो !


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract