धूमिल संस्कृति
धूमिल संस्कृति
संस्कृति अब धूमिल
होती है दिखती,
वक़्त-वक्त के साथ
मंज़र एक आया है,
काफ़िलों के हाथ।
पतन हो रही सभ्यता
दिख रहा जो स्वरूप है
मनमानी कहे लोगो की
या कहें पश्चिमी सभ्यता
का दुष्प्रभाव ।।
भूल गए शास्त्र ?
भूल गए मर्यादा ?
क्यों हनन कर रहे
हम हाथों खुद
जीवन अपना।
एक नयी सोच की ओर
कदम बढायें यारो,
बिन फेरे हम तेरे
कहावत का खण्डन करें,
इतनी भी नही बढ़ी
आधुनिकता मेरे यारो,
कि जिसका हम खुल कर
समर्थन करें।
