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Akshat Shahi

Abstract

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Akshat Shahi

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धुआँ

धुआँ

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इस दफे बाहार में यूँ करते हैं 

बाग़ में जाने से परहेज़ रखते हैं

इस धुएं से परेशान फूल भी होगा

वो गुन्हेगार पहचान लिया करते हैं

मशरूफ रहना मुश्किल भी नहीं 

बहुत मसले हैं अदालत में अभी 

जमीन किसकी होगी यह पता है 

पट्टा चढ़ गया है फकीरों के नाम 

इमारतें भी दो बन जाएंगी 

पर मंदीर कौन जाएगा

आज़ान कौन बुलाएगा 

ये फैसला बाकी है अभी 

पता तो ये भी करना था 

किस किस के हाथ कटे हैं 

इमारतों बनाने में आज तक 

कितनो के सर कटे हैं

ढहते मंदीर मस्जिदों के साथ 

चलो सब तहकीकात करते हैं 

फूल से भी ये बात करते हैं 

धुआँ भूल जाए हवा का वो 

उस पर भी ये चाल चलते हैं 



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