धरती
धरती
ईश्वर है एक दयालु कलाकार ,
धरती देदी उसने इंसानों को उपहार।
देख धरती का इतना सुन्दर रूप ,
इंसान हो गया थोड़ा सा लोलुप।
फलों के वृक्ष थे इतने प्यारे,
नहीं था उनका कोई कसूर ,फिर भी के गए बिचारे।
इंसानों ने उठाया शुद्ध हवा का भरपूर मज़ा,
फिर हवा को अशुद्ध कर ,
बेकसूर जानवरों को दे दी इन्होंने सजा।
धरती की सुंदरता को किया इंसानों ने बेकार,
अपमानित किया इन्होंने इश्वर का उपहार।
धरती की गोद में प्रकृति है पलती ,
देख धरती का दुख उसके दिल में आग है जलती,
प्रकृति ने जान लिया कि यह है इंसानों की गलती।
दिखाई प्रकृति ने ऐसी क्रूर सूरत,
आ गया इंसानों पार विपदा का मोहरात।
फिर भी प्रकृति को इंसानों पार दया आयी,
उसने इंसानों को अपने दिल कि बात बताई।
प्रकृति ने कहा:
ऐ इंसानों देती हूं मै तुम्हे सुधरने का मौका ,
फिर मत करना तुम धरती के साथ धोका।
मै जानती हूं:
ईश्वर का एहसान तो नहीं चुका पाओगे तुम,
पर धरती पर रहने का सही तरीका तो आपनाओगे तुम।
