औरत
औरत
कहने को तो औरत इस दुनिया पर बोझ है,
पर असल में वह जादू का भोग है।
यदि औरत ना होती तो घर में बच्चों की
किलकारियां सुनाई ना देती और
खुशियों की क्यारियां ना होती।
कहने को तो औरत फूल के समान है ,
पर इस समाज में उसे मिला कहां सम्मान है।
यदि औरत ना होती तो नहीं बस पता तेरा ये घर
कभी सोचा है यदि नहीं होती मुमताज़,
तो ना होता यह ताज।
कहने को तो औरत की है नहीं कोई महानता ,
पर उसकी महानता ईश्वर भी है जनता।
कहने को तो औरत एक छोटी प्याली है,
पर असल में वह अपने दम पर पूरी दुनिया चलाती है।
औरत की एक पहचान है कि वो इस दुनिया पर मेहरबान है
उसकी कद्र करना क्योंकि वो इस दुनिया की शान है।
