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manish bhatnagar

Abstract

5.0  

manish bhatnagar

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धरती माँ का श्रृंगार

धरती माँ का श्रृंगार

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आओ हम सब मिलकर के, 

धरती माँ का श्रृंगार करें

कुछ मनन करें, कुछ जतन करें,

हरियाली का संचार करें !


जीवित धरती, सुंदर धरती, 

फिर हम क्यों ऐसा काम करें ? 

कूड़ा करकट क्यों फ़ैलाएँ 

क्यों धरती को बदनाम करें !


कचरे के ढेर लगा कर के, 

जल वायु को संक्रमित किया

हरा भरा, सुंदर जीवन 

ये- क्यों हमने "शमशान' किया ?


नदियों को माता कहते, 

पूजा करते, आदर करते

फिर क्यों हमने उन नदियों को

नालों में है तब्दील किया ?


दूर ग्रहों पे कूच किया, 

आधुनिकता का संवाद किया

अपनी ही धरती को हमने, 

ये कैसा नासूर दिया ?


धरती माँ, सबका ख्याल करे

हर जाति, कुल का ध्यान करे

फिर क्यों ना हम सब जग जाएँ

कुछ ऐसा जग में कर जाएँ !


तो आओ, हम सब मिलजुल कर 

कोने-२ को सॉफ करें

घर, अंदर, बाहर, गली-२

कूड़े, कचरे का नाश करें !


जब चमकेंगे सब गलियारे, 

तब दूर मिटेंगे अँधियारे

हर चेहरे पर रौनक होगी

सामर्थ्य और शक्ति होगी।

घर, आँगन हो, या विद्यालय

हो सड़कें, या फिर देवालय

हम सबकी ज़िम्मेदारी है 

स्वच्छता में भागीदारी है।


भारत भूमि का मान करो

खुद पे तुम अभिमान करो,

संतों की पावन भूमि ये

कुछ तो इसका सम्मान करो।


हैं जीव, जन्तु विस्तृत प्रकार 

सबको जीने का अधिकार  

क्यों उनकी साँसे करते कम !

पहले से हैं क्या, कम कुछ गम ?


सार्वजनिक स्थानों को

अपना जानो- अपना मानो

ना करो गंदगी स्वयं कभी 

ना करने दो - इतना जानो।


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