" धरोहर "
" धरोहर "
हम नये
सपने सजाते हैं,
नये भवनों
को बनाते हैं ,
गांवों को छोड़ के शहरों का
रुख करते हैं ,
प्रतिस्प्रधा के दौड़
में ज़द्दोज़हद करते हैं !
हर कोई
चाहता है इतिहास
पीछे रह जाये,
बीते हुए लम्हों
को
व्यर्थ क्यों हम दुहरायें ?
मिली है
आज़ादी पूर्वजों की
कुर्बानियों से
उसे हम कैसे भुलाएँ ?
हम क्यों न
नयी दुनियाँ बसायें ?
संसार में अपना नाम कमायें ?
पर वही
हे श्रेष्ठ मानव
जो नहीं भूले 'धरोहर' !
