धनुष अब भी तुम्हारे हाथ है
धनुष अब भी तुम्हारे हाथ है
कठिन परिश्रम के बाद
उसने अपने लिए थे
सोने के झुमके बनवाये।
पहन करती थी खेतों में काम
सखियों की नज़र में उसकी
चमक रानी सी दिखाई देती थी।
इस संसार में उसके पास एक ही
बहुमूल्य यह आभूषण था
जिसे पहन वह मुस्काती - इतराती थी।
बोझा ढोते हुए अचानक एक दिन
कहीं गिर गया वो बेशकिमती गहना
उसकी बेचैनी को मुश्किल है बयां करना।
पूरे खेत की मिट्टी उसने हाथों से उलट दी
पगडंडियों का बदहवाश हो धूल बुहार दी
जाने किस फसल के हवाले हुआ एक झुमका।
संध्या होते-होते वह फूट-फूट कर लगी बिलखने
हौसला ना रहा कुछ कैसे मन को सोचे समझाने
अनाज के ढेर के सामने हो खड़ी लगी बड़बड़ाने।
वक्त गुजरा पर हृदय अब भी व्याकुल था
खेतों से गुजरते हुए नज़र में तलाश हर पल था
ना खाती ठीक से ना उठाती मन से बोझा है वो।
दशा उसकी देख सखी ने ढ़ाढस बंधाया
कमान से तीर ही एक निकला है धनुष तो हाथ है
जब तुम करो और मेहनत फिर सबकुछ साथ है।
उम्मीदों के प्रत्यंचा पर सपनों का नया तीर चढ़ाओ
सामने रखो निशाना अपनी हर आश तुम पा जाओ
ना रहो निराश आंसू को पोंछ रास्ता संवारती जाओ।