STORYMIRROR

Natasha Kushwaha

Tragedy

4  

Natasha Kushwaha

Tragedy

दहेज प्रथा

दहेज प्रथा

1 min
293



सुंदर साज सज्जा

सिंगार युक्त नारी


ब्याह वरण की बेला

कन्या पिता मन भारी


दहेज प्रथा ऐसी जैसे

पिता गले चली आरी


आज के भी युग में

कई वर व्यभिचारी


क्लेस हर पिता का

लिखती भारतीय नारी


नारी की खुशियों को

पिता होते बलिहारी

      

बेटी के मुख से हाल

लिखूं पूरा संभाल

      

पिता प्राण प्यारे हमरे

रखवाले, ले लो शीख


>

देना नही कभी भी इन

भिखारियों को भीख


जिसके साथ घुटे दम

निकले बेटी की चीख


आज जो दहेज मांगते है

जीवन भर मर्यादा लगते है


आप श्री जन का दहेज

महीना भर खाते है


दहेज खतम हो गया तब

हाय हाय गाना गाते हैं

       

बेटी कहे हे मां पिता

क्या गारंटी लेते हो इसकी


महल हेतु, वर स्वरूप 

इज्जत बिकाऊ है जिसकी


जीवन में खुद कमाऊ खाऊं

पर वर की बाली ना चढ़ जाऊं।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy