दहेज प्रथा
दहेज प्रथा


सुंदर साज सज्जा
सिंगार युक्त नारी
ब्याह वरण की बेला
कन्या पिता मन भारी
दहेज प्रथा ऐसी जैसे
पिता गले चली आरी
आज के भी युग में
कई वर व्यभिचारी
क्लेस हर पिता का
लिखती भारतीय नारी
नारी की खुशियों को
पिता होते बलिहारी
बेटी के मुख से हाल
लिखूं पूरा संभाल
पिता प्राण प्यारे हमरे
रखवाले, ले लो शीख
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देना नही कभी भी इन
भिखारियों को भीख
जिसके साथ घुटे दम
निकले बेटी की चीख
आज जो दहेज मांगते है
जीवन भर मर्यादा लगते है
आप श्री जन का दहेज
महीना भर खाते है
दहेज खतम हो गया तब
हाय हाय गाना गाते हैं
बेटी कहे हे मां पिता
क्या गारंटी लेते हो इसकी
महल हेतु, वर स्वरूप
इज्जत बिकाऊ है जिसकी
जीवन में खुद कमाऊ खाऊं
पर वर की बाली ना चढ़ जाऊं।