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Sandeep Kumar

Abstract

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Sandeep Kumar

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धान की डाली

धान की डाली

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पके धान की डाली को जब

मैंने नजदीक से देख पाया था

तब अनुमान थोड़ा सा यह

लगाने का प्रयत्न कर पाया था।।


कि किसान कैसे खेत को 

हल बैल से सीच लेता है

मधुर मधुर धान की डाली

घर को ले आ पाता है,,,,


फिर भी नहीं भाग्य विधाता 

भाग्य में उसका दे पाता है

दो-चार दिन से नहीं ज्यादा

रख धर में वह पाता है।।


क्योंकि कर्ज ले कर वह

खेती तो लगा लेता है

पर कर्ज चुकाने के लिए

धान बाजार ले आता है


बाजार मंडी वाले उससे

लाखों-करोड़ों कमाता हैं

बेचारा किसान हाथ पर हाथ धर

झकते रह जाता है।।


सरकार भी नहीं उसका

जो एक भी सुन पाएगा

कोई भी योजना इस

गरीब के लिए लाएगा।।


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