देश
देश
देश की सरहदों पर जो है डटा हुआ
रात दिन हर मौसम को सहता हुआ
किसी मज़हब, कौम के दायरे में बंधा नहीं है वो
सैनिक है सिर्फ़ वतन से जुड़ा है वो
परिवार, प्यार, सब कुर्बान दे वतन पर
सिर्फ़ मुल्क ही सबसे पहले है उसका जन्म भर
अपने सभी ज़ज्बात जो छुपा लेता है
भीगी आँखों के आँसूं भी चुपके से पोंछ लेता है
अपने घर से दूर इतना आ गया है अब
सारा भारत ही अब उसे अपना ही लगता है।