देश के भाल की बिंदी
देश के भाल की बिंदी
सारे जग में हिन्दी शान से बोली जाती है,
शिखर से भाषा की सरिता बहती जाती है !
पावन भाषा हिंदी देश के भाल की बिंदी है,
समस्त संसार में तिलक के समान हिंदी है !
अपनी भाषा हिन्दी का विशाल हृदय है ,
सब भाषाओं का पोषण कर सकती है।
हिन्दी अपने संस्कार व वाणी माधुर्य से ,
भाव विश्व में सृजन के रंग भर सकती है।
हिन्दी बन सकती है श्रंगार जगत का,
दुःख दारिद्रय को स्वतः हर सकती है।
हिन्दी बड़ी लचीली है और कोमल भी,
संभव यज्ञ पूर्ण, विज्ञान का कर सकती है।
कंम्पयूटर, इंटरनेट की दुनियां का ,
नया ब्रह्माणड सृजित कर सकती है।
हिंदीभाषी विरोधी नहीं किसी भाषा के,
समृद्ध भाषा जग कल्याण कर सकती है!