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Sandeep Kumar

Abstract

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Sandeep Kumar

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डूबा है अभी भी दिल लगता है उसकी प्यार में

डूबा है अभी भी दिल लगता है उसकी प्यार में

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डूबा है अभी भी दिल

लगता है उसकी प्यार में

तभी तो आंखें भर आती

जरा सी एतबार में।


छलक जाती है किरदारे उनकी

अंखियों की दीवार में

नहीं तो क्यों झुक जाती 

पलके मेरी दिलदार में।


कहीं तो दबा है जहान में

यादें उनकी प्यार की

तभी तो बेकरार होता है दिल

राह ऐ इंतजार में।


कहीं ना कहीं चर्चा करती है वह

मेरे थोड़े दिन की प्यार की

तभी तो हिचकी आती है हमें

भोजन की थाल पे।


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