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Rajeev Kumar

Abstract

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Rajeev Kumar

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डरावना सपना

डरावना सपना

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सन्नाटा पसरा है

काली अंधेरी रात है

जंगल है वियावान है


आग के लपटों की दो धार फुटी

किसी का डरावना चेहरा दिखा

इन्सानी शक्ल से हटकर

वो डरावना चेहरा पास आता गया


रोंगटे खड़े हो गए

चीखने की कोशिश की तो

आवाज अटक गई हलक में

कदम दौड़ पाने में असमर्थ


नींद खुली तो माँ ने पुछा

कोई भयानक सपना देख रही थी क्या ?


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