डर
डर
क्यों डर लगता है
कुछ अनहोनी होने का
क्यों काँपता है शरीर
महसूस करके आहट का
अंधेरे में देख परछाईं
होश उड़ जाता है खुद का
आँखें बंद रखूँ कि खुली
एहसास नहीं होता समझने का
कुछ आवाज़े यूं दब जाती
जी करता है चिल्लाने का
कौन कहां किससे डरता
असर डरावने बातों का
अगर हो दिल सच्चा तो फिर
वक्त नहीं पड़ता घबराने का
दिल में है अगर कुछ छुपाया
है अंदरूनी डर सारे जहां का
