ढूंढती रहती हूॅं
ढूंढती रहती हूॅं
तेरे बारे में बहुत कुछ
हैं सुना, पढ़ा और लिखा
पर जब भी कुछ सोचूँ
और उलझती ही जाती हूँ
आखिर क्या हैं तेरा मक़ाम
बस ढूंढती रहती हूँ ...
पूरेपन में कैसा अधूरापन
सुकून में कैसी बेचैनी
हैं अपनी जगह
सब कुछ सही सही
खुशियों में तसल्ली कहाँ
फिर ये ढूंढती रहती हूँ ...
अपनों में कैसा परायापन
दोस्तों में कैसी तनहाई
हैं बुन के बंधन
सब साथी आस पास
रिश्तों में प्यार कहाँ
ये ढूंढती रहती हूँ ...
मिट्टी में मिलने से पहले ही
क्यों हैं लगती बिखरी सी
कैसे हैं तुझे संवारना
ऐ जिंदगी !!
तुझी में तुझी को
ढूंढती रहती हूँ
बस ढूंढती रहती हूँ .......