सलाम दुश्मन
सलाम दुश्मन
अपने दुश्मनों को, तहेदिल से सलाम करते हैं।
जो हमारा जिक्र, दिन-रात सुबह-शाम करते हैं।।
दोस्त याद करते हैं कि नहीं, ये तो पता नहीं।
बुराई के बहाने ही सही, मेरे रकीब याद करते हैं।
आँगन में खड़े नीम के कड़वे घनेरे वृक्ष जिस तरह
आबोहवा को अपनी कड़वाहट से साफ़ करते हैं।
मैं उन्हें अमृत वचनों से सींचने से नहीं हिचकती
मेरे लिए जो जहर की,हर जगह बरसात करते हैं।
दुआ है ख़ुदा से, महफूज रखें उन्हें हर बला से
जो मेरी वजह से ही सही ख़ुदा को याद करते हैं।
इस जिंदगी का हर लम्हा हो जाता है बेहद दुश्वार
वक्त बदलते ही जब, मेरे अज़ीज़ रंग बदलते हैं।
डर लगता नहीं किंचित भी, दुश्मन के गले लगने से
डरते हैं उन दोस्तों से, जो आस्तिन में सांप रखते हैं।
