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Pradeep Sahare

Inspirational

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Pradeep Sahare

Inspirational

ढक्कन

ढक्कन

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उसने मुझे बोला,

" अबे ओ ढक्कन "

सुन,

हुआ क्रोधित मन

लड़ने पर हुआ उतारू

गाली देना किया शुरु

पकड़ी कॉलर ,

लगा दिए दो दना दन

हुआ थोड़ा शांत मन

शांत हुआ मन तो,

देखा इधर उधर

सब तरफ आये,

ढक्कन ही नज़र

देख मन हुआ धन्य,

लगा बिना ढक्कन।

सब जीवन शून्य

शून्य नज़र से,

देखना किया शुरु

तो !!


ढक्कन ही निकला,

सबका गुरु

गुरु की कहानी,

अपनी जुबानी।

" नहीं कोई इसमें,

दोहरा, दूजा मत

डिब्बा हो या बोतल।

या हो कहानी, कविता,

न्याय, अन्याय का,

फैसला लिखने वाली कलम

या हो हमारा जीवन,

ढक्कन की महत्ता,

नहीं हैं कम...

बिना ढक्कन, अधूरा जीवन



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