डायरी फिर हार गई
डायरी फिर हार गई
बिखरे यादों के पन्नों से
थक गई कलम
डायरी फिर हार गई।
कोशिश थी मेरी
सहेजने समेटने की
रखा था जितना ही
दबा कर शब्दों को।
ढुलक गए शब्द
डायरी से मेरी।
थक गई कलम
डायरी फिर हार गई।
मन के सूने कोने में
अंबार था यादों का
फूटा फव्वारे सम
साथी बन स्याही का।
बेचैनी के पंख लिए
फड़फड़ाता रहा
पर थक गई कलम
डायरी फिर हार गई।
खट्टी मीठी यादें
हर पल हर क्षण
पड़ी अंतरतम में
गुदगुदाती हैं मुझे।
शब्दों की माला में
पिरोते पिरोते ही
थक गई कलम।