दास्ताँ ऐसी होगी कभी सोचा ना था
दास्ताँ ऐसी होगी कभी सोचा ना था


दास्ताँ एसी होगी कभी सोचा ना था,
मैं तुमसे मिलूँ ऐसा होना ना था।
रास्तें रोके जब तुम खड़ी हो गईं
यूँ लगा अब जिन्दगी से बड़ी हो गईं।
आजमाईं हमे छड़ भर के लिए
कर दिया गुस्ताखी हर पल के लिए।
तेरे आने-जाने का ना गम हैं हमें
मैं एसे चलूँ ना कोई ख़म हैं हमें।
ये मोहब्बत का सिलसिला जो चलता रहें
मैं क्यों डरूँ ? जो अमर रहें ?
बात ऐसी नहीं की कोई गम नहीं
कुछ अपने परायें से भी कम नहीं।
मगर सिलसिला जो ये चलता रहें
नावाफ़िक हमेशा नावाफ़िक रहें।
हर चुनौती से दो हाथ हमनें किये
आंधियों में जलाऐ हैं बुझते दिये।
दिखा पर मगर हमने देखा नहीं
था गिला सिकवा हमने सिखा नहीं।
आने वाली हर पल से अन्जान हूँ
क्या लिखूँ अभी बेजान हूँ।
लड़ना सिखाऊँगा महफ़िल से मैं
मुनासिब तेरा अभी अंजान हूँ।