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चुनावी समर

चुनावी समर

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यह चुनाव का महासमर है,

रैली, भाषण से व्यथित शहर है।

गाँव-गाँव में गली-गली में,

रिश्तों में घुल रहा जहर है।।


छोटका नेता, बड़का नेता,

खादी-कुरता वाला नेता।

सड़क छाप नुक्कड़ का नेता,

सबका अपना अलग असर है।।


दलबदलू की कमी नहीं है,

जीत की धमकी थमी नहीं है।

जनमत को हथियाने खातिर,

हर हथकण्डे आठों पहर है।।


वादों की बौछारें करते,

नई सियासत नित-नित रचते,

धर्म, जाति, सम्प्रदायवाद का,

जनमानस में घुला जहर है।।


आरोपों, प्रत्यारोपों की लम्बी फाइल,

मानो दाग रहे हो जैसे कोई मिसाइल।

कल तक जिस पर जहर उगलते,

आज उसी से मिली नजर है।।


शमशानों, कब्रिस्तानों पर भी चर्चा है,

कहते मैंने सबसे अधिक किया खर्चा है।

शायद मुर्दों से भी कुछ मत मिल ही जाए,

इस आशा से शमशानों पर गड़ी नजर है।।


जुमलों की बौछार देखिये,

प्रतिनिधि भारत सरकार देखिये।

कोई मदारी जैसे आया खेल दिखाने,

जिसे देख जनता में भी नव जोश लहर है।।


नेता तो है चोर-चोर मौसेरे भाई,

फिर भी इसमें से चुनना है मेरे भाई।

देश, राष्ट्र हित इनको लेकर मंथन करिए,

फिर निर्णय लें यह चुनाव का शुभ अवसर है।।


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