चंचल शाम
चंचल शाम
यूँ तो शामें चंचल होती हैं
आती हैं और रात के आगोश में
समा जाती है
अपने सपने के साथ
पर आज की ये शाम कुछ खास है
ठहर गयी है इसकी चंचलता
घिरा गया है जिस्म शाम से
आंखों में उसी के नजारे हैं
धड़क रहा है दिल उसके रंग की संगति पर
घोल दिया है शाम ने हवा में अपनी खुशबू
रोज हम उसका इंतजार करते थे
आज हमारी मेजबानी कर रही है
ठहरी ठहरी सी।