चलता चल
चलता चल


धर्म ध्वजा रख हाथ में,
बढ़ते जाओ वीर।
धर्म की रक्षा के खातिर,
चले सत्कर्म के तीर।।
सजे हमेशा खुशियों से,
दीनन का संसार।
निज कर्मों से हो उनमें,
नवगति का संचार।।
बन दीप मानवता का
मिटा द्वेष का तम।
काल अधर्मी का बन जा,
ना कर उनपे रहम।।
अमन शांति के लिए सभी
आज हुए बेचैन।
धर्म के रक्षक अब तुम्हें
देना सबको चैन।।
भेदभाव नित बढ़त रहे,
बढ़ी दूरियां आज।
आपस में सब एक हों
ऐसा करियो काज।।
मानवता का धर्म बने,
सब दिल की पहचान।
धर्म ध्वजा छूटे नहीं,
चाहे चली जाए जान।।
भारत के है वीर वही,
जो अड़े धर्म की आन
मानवता का व्रत ही
है उनकी पहचान।।
सतकर्मों के बल से ही,
बदलो तुम तकदीर।
धर्म ध्वजा रख हाथ में,
बढ़ते जाओ वीर।।