चिठ्ठी
चिठ्ठी
चिट्ठी खो गई तू,
गुमनामी में
कितना स्नेह,
कितना प्यार
कितनी भावनाओं में,
सराबोर तेरा तन
हुआ करता था,
कभी तू नम कर देती
थी आँखों को
खबर फ़िक्र की लाकर,
तो सुकून दिलों को
खुशी चेहरों को
दे जाती थी तू ही,
अपनों का प्यार
जरूरी संदेश,
तेरे पन्नों में
लिपटा हुआ करता था
सुना इंसा ने अपनी
जरूरतें बदल दीं,
कहते हैं तरक़्क़ी
बहुत कर ली
सुना सब पास हैं
रोज संदेशे आस पास हैं
तब भी है दूरी
समय की मजबूरी,
मिठास जो भाव तेरे
शब्दों से मिलता था,
रोज के सन्देशों में भी नहीं
भले देर से पहुँचती
आशायें बांधे रखती
सफलता की कहानी कभी,
उद्गार मन के जताती
संदेशे जरूरी अनेक
लग कर सीने से तू,
कितने बता जाती
इंसानियत खो रही
जैसे इंसानों में
वजूद भी गुम तेरा
हो गया जमाने में।