पहला विद्यालय
पहला विद्यालय
आज था मन कुछ खुश
औऱ कुछ घबराया सा
डगमग झिझक कर कदम बढ़ाके,
कुछ जन्मदिवस के त्यौहार सा
खास वो भी दिन था
मन में कितनी बातें थी उठती
उठापटक और ज्वार था।
पहुंचा जब दहलीज पे उसकी
मन में मंदिर सा भाव था
दिखता साधारण सा था मगर
असाधारण उसका खिंचाव था।
जीवन मे ज्ञान के रंग भरने को
ये मेरा पहला विद्यालय था
चरण स्पर्श किये गुरुजनों के
ऐसा माँ ने समझाया था।
मधुर मुस्कान उनके मुख पर
देख के मै भी मुस्काया था
ताकता रहा यहाँ -वहाँ सब
कक्षों की दीवारों को
जहाँ लटकते काले श्यामपट्ट ने
ज्ञान का मोती बांटा था।
अलमारी की घूरती किताबें
क्यारी का फूल देख हंसता था
लहर खुशी की हिलोरें मारती
दोस्त नया जो यहाँ मिला था
खेले कितने खेल अनोखे
सूखी रोटी ने भी रस घोला था।
आने वाले भविष्य धुरी का
वही तो पहला मजबूत स्तम्भ था
मुझ जैसे कोरे कागज पर
ज्ञान अनुभवों का रंग उड़ेला था
उस भोले भाले कोमल मन ने
पाया कितना अद्भुत एहसास था।
वो विद्यालय नहीं मंदिर जीवन का
काबिल बनाने को तराशा था
आज भी सहसा झुक जाता शीश है
ऐसा वो भविष्य निर्माता था।