चिंता की चादर
चिंता की चादर
जहाँ एक तरफ़ इस ज़िन्दगी में उलझनें हज़ार हैं।
दूसरी ओर जीने के बहाने भी मिलते कई बार हैं।।
नासमझी में हम ही तो कर देते हैं अनदेखा उनको।
जी लो जीभर जीने के जो भी पल मिले दो चार हैं।।
सफ़र में कितने झंझावातों से गुजरती है ज़िन्दग़ी।
कोशिशें भी हमारी अनेकों बार हो जाती बेकार हैं।।
किन्तु इसका अर्थ ये तो नहीं कि जीना ही छोड़ दें।
धैर्य और विश्वास है जिसमें वही यहांँ समझदार है।।
चिन्ता की चादर ओढ़ने से समाधान नहीं मिलता।
फिर भी हर इंसान व्यर्थ चिंता करने को तैयार हैं।।
एक बार में मिलता नहीं हल बार-बार प्रयास करो।
कोशिशों के दीए जलाने से मिट जाता अंधकार है।।
वैसे भी वक्त एक सा नहीं रहता बदलता है सदैव।
जो कोशिश करे वक्त भी सुनता उसी की पुकार है।।
रेल सम ये जिंदगी सुख-दु:ख के पड़ाव तो आएंगे।
जीना सीख ले अगर तो हर लम्हा यहाँ गुलज़ार है।।