चीखती खामोशियाँ
चीखती खामोशियाँ
चीखती खामोशियाँ हैं, इस दर-ओ-दिवार में,
बसी फ़क़्त तन्हाईयाँ हैं, मेरे उजड़े दयार में,
इन हालात का सिर्फ मुझे ज़िम्मेदार बता गया,
हमदर्दी भी तो ना थी तबियत-ए-ग़मगुसार में,
झूठी तसल्ली देने आते हैं तमाम हसद के मारे,
उम्मीद किस सूरत नज़र आये मुझे अज़ादार में,
लब-ए-चारागर से इक हर्फ़ सुनने से क्या होगा,
शायद आएगा कुछ आराम बोस-ओ-कनार में,
बेदम-ओ-बेज़ार हुआ वो चल कर बस दो गाम
होता ही कौन है हमसफ़र इस रास्ता-ए-दुश्वार में,
सवालिया निशान लगा दिया हम आधे-अधूरों पे,
तेरी बज़्म पूरा उतरा है कौन, इश्क़ के म्यार में,
'दक्ष' नामुमकिन कि उलझे ना हमसे दामन-ए-यार,
गुलों ने तो हमेशा ली है पनाह दरख्त-ए-खारदार में,
तबियत-ए-ग़मगुसार = दर्द बांटने वाले की प्रक्रृति ; हसद = ईर्ष्या ; अज़ादार = मातम करने वाला ;
लब-ए-चारागर = इलाज़ करने वाले के होंठ ; बोस-ओ-कनार = प्रेमियों की अंतरंग बातें ;
बेदम-ओ-बेज़ार = थका और मायूस ; गाम = क़दम ; रास्ता-ए-दुश्वार = कठिन राह ;
म्यार = मानक /standard ; दरख्त-ए-खारदार = कांटेदार पौधा
