छलकना भी चाहिए
छलकना भी चाहिए
मन की केतली में उबलते हुए ख्यालों को
कभी कभी छलकना भी चाहिए
बरसों से घने होते दर्द और पीड़ा के बादलों को
कभी कभी बरसना भी चाहिए
हर बार लहरों को पीछे लौटाने वाले साहिलों को
कभी कभी तरसना भी चाहिए
दूसरों की जिंदगी को खुशबू महकाने वाले फूलों को
पहले खुद तो पूरी तरह निखरना चाहिए
कभी किसी की नज़र नहीं पहुंची जिन नौनिहालों पर
उन गर्दिश के तारों को भी चमकना चाहिए।
