STORYMIRROR

Pramila Singh

Abstract

4  

Pramila Singh

Abstract

छलकना भी चाहिए

छलकना भी चाहिए

1 min
429

मन की केतली में उबलते हुए ख्यालों को 

कभी कभी छलकना भी चाहिए


बरसों से घने होते दर्द और पीड़ा के बादलों को

कभी कभी बरसना भी चाहिए


हर बार लहरों को पीछे लौटाने वाले साहिलों को

कभी कभी तरसना भी चाहिए


दूसरों की जिंदगी को खुशबू महकाने वाले फूलों को

पहले खुद तो पूरी तरह निखरना चाहिए


कभी किसी की नज़र नहीं पहुंची जिन नौनिहालों पर

उन गर्दिश के तारों को भी चमकना चाहिए।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract