चेतना के स्वर
चेतना के स्वर
कुछ अपने थे जो रूठ गये,
कुछ सपने थे जो टूट गये,
कुछ सोये जो फिर उठे नही,
कुछ उठ कर जग को कूच गये ।
माना ये तांडव जारी है
उलझे ताने खुल जाएँगे ,
हमनें न हिम्मत हारी है !
कुछ कालाबाज़ारी में डूब गये ,
कुछ लुट गये कुछ लूट गये,
कुछ होते रहे घर से बेघर,
पीते मजबूरी के घूँट रहे!
माना वक़्त का पलड़ा भारी है
ये भी पलटेगा ज़रूर
हमने न हिम्मत हारी है!
कुछ इक दूजे को कोस रहे,
कुछ सोच सोच कर सोच रहे,
कब क्यों कहाँ कैसे हुआ,
कुछ मुद्दे मन को कचोट रहे,
माना हर नब्ज दुखियारी है,
आग़ाज़ है तो फिर अंत भी होगा,
हमने न हिम्मत हारी है!
कुछ मानव रूप धर देव बने,
कुछ रक्षक और अधिदेव बने,
कुछ करमवीर बनकर उभरे,
संकट नाशक महादेव बने,
माना कर्मगति न्यारी है,
पर मानवता अभी मरी नही,
हमने न हिम्मत हारी है।
रात हो कितनी गहरी ,ढल जाएगी,
मेहनत छोटी भी रंग लाऐगी,
धैर्य से रहे मनोबल ऊँचा ,
हर घड़ी मुश्किल का हल लायेगी,
ठान लो अब जीत हमारी है,
आशा का सूरज चमक रहा,
हमने न हिम्मत हारी है!