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चेहरा

चेहरा

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कुटुंब की तस्वीर में 

जिसने जीवन रंग भरा 

शाम ढले मायूस हुआ 

कैसे ओ चेहरा । 

1. 

क्या-क्या किये प्रयास 

और क्या - क्या विपदाएँ झेली।

करुणा भरी निगाह से 

अपनी देखी कहाँ हथेली। 

मेहनत को प्रतिबिंबित 

करता है घट्ठा उभरा। 

शाम ढले मायूस हुआ 

कैसे ओ चेहरा। 

2.

घात और प्रतिघातों से 

वो रहा खेलता खेल। 

उम्र निचोड़ - निचोड़ दिया 

सूखी बाती में तेल।

सपना उसकी उम्मीदों पर

सच क्यों न उतरा। 

शाम ढले मायूस हुआ 

कैसे ओ चेहरा ।

3.

फौलादी कंधो पर 

अपने थामे रखा आसमान। 

जीवन से जुड़ी हर 

मुश्किल किया स्वयं आसान।

अरमानो की फसल में 

सारी रात दिया पहरा। 

शाम ढले मायूस हुआ 

कैसे ओ चेहरा।

4.

परिश्रम के पसीने से 

सींची हर एक क्यारी। 

माली के मानिंद निभायी 

अपनी जिम्मेदारी। 

उपवन की शोभा में

"अमरेश" त्याग छिपा गहरा।

शाम ढले मायूस हुआ 

कैसे ओ चेहरा। 



[ अमरेश सिंह भदोरिया

,अजीतपुर ]



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