दर्द
दर्द
बस्ती वालों से बचकर रहा कीजिए
दर्द सीने में खुद ही सहा कीजिए
रोज़ तुमसे करूँ मैं गिला शिकवा
बात ऐसी न मुझसे कहा कीजिए
मयख़ाने से है मेरा नाता जुड़ा
पैमानों में मुझसे मिला कीजिए
हसरतें आज है मेरे दिल की जवां
शोला भड़के न ऐसी हवा दीजिए
तेरी चाहत में गुज़री है जिनकी उम्र
उन बुज़ुर्गों के हित कुछ दुआ कीजिए
हो के बेघर हम रहते है दिल में तेरे
कुछ गरीबी पे मेरी दया कीजिए
खुशबू बन के न छू ले कोई धड़कन तेरी
ठंडी आहें न तुम यूं भरा कीजिए
जिस गली में है मेरा बसेरा बना
किसी शाम उधर भी गुज़रा कीजिए
परछाइयों से डर तुम्हें जब लगने लगे
चेहरा दर्पण से "अमरेश" हटा लीजिए।