STORYMIRROR

दर्द

दर्द

1 min
14K


बस्ती वालों से बचकर रहा कीजिए

दर्द सीने में खुद ही सहा कीजिए  

रोज़ तुमसे करूँ मैं गिला शिकवा

बात ऐसी न मुझसे कहा कीजिए

मयख़ाने से है मेरा नाता जुड़ा

पैमानों में मुझसे मिला कीजिए

हसरतें आज है मेरे दिल की जवां

शोला भड़के न ऐसी हवा दीजिए

तेरी चाहत में गुज़री है जिनकी उम्र

उन बुज़ुर्गों के हित कुछ दुआ कीजिए 

हो के बेघर हम रहते है दिल में तेरे

कुछ गरीबी पे मेरी दया कीजिए

खुशबू बन के न छू ले कोई धड़कन तेरी 

ठंडी आहें न तुम यूं भरा कीजिए

जिस गली में है मेरा बसेरा बना

किसी शाम उधर भी गुज़रा कीजिए  

परछाइयों से डर तुम्हें जब लगने लगे

चेहरा दर्पण से "अमरेश" हटा लीजिए।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract