चाय
चाय
चाय पीने-पिलाने का भी अपना मज़ा है
ये हमारे जीवन को देती जीने की वज़ा है
जहान में जब सब अपने ही रूठ जाते है
सब रिश्ते चकनाचूर होकर टूट जाते है,
तब चाय बनाती हमारी बिगड़ी फ़िजा है
इसमें शत्रु को दोस्त बनाने की अदा है
चाय पीने-पिलाने का भी अपना मज़ा है
डूबती जिंदगी को देती हंसती तनूजा है
चाय तो कलियुग का बरसता अमृत है,
ये ख़ुदा की एक अद्भुत सी मिली रजा है
टूटी जिंदगी के नगाड़े पे करती गजा है
चाय पीने-पिलाने का भी अपना मज़ा है
जिंदगी को देती नव-ऊर्जा की बीजा है