चाय सा इश्क
चाय सा इश्क
सुबह की गर्म चाय सा इश्क तेरा
जिसमें सिमटा है वजूद मेरा
लाइफलाइन सा मेरी रगों में बहता है
भरी सर्दी में भी मुझको गर्मी देता है
अधरों के शहद की मिठास
नित नई ऊर्जा प्रदान करती है
आंखों की सरगोशियां
संजीवनी का सा काम करती हैं
गेसुओं का मखमली अहसास
गर्म रजाई की तरह लिपटा हुआ है
होठों की शबनम में भीगकर
दिल गुलाब के फूल सा खिल रहा है
जब तुम नयनों से बरजती हो तो
अदरक का सा स्वाद आ जाता है
कभी कभी तेरे उलहानों में
लौंग का सा जायका नजर आ जाता है
हाय, तेरा वो जालिम तबस्सुम
चाय के साथ नमकीन सा स्वाद दे जाता है
तेरे महके हुए बदन का स्पर्श
हलवे सी खुशबू से "भूख" बढा जाता है
चाय के नशे से कहीं बढकर है
तेरे इश्क का ये खूबसूरत नशा
जो हरदम मुझे तरोताजा रखता है
जिसे मैं रोज पीता रहता हूं
मगर ये फिर भी चाय के प्याले की तरह
हमेशा भरा भरा ही नजर आता है
ये कैसा है इश्क तेरा
शाम की चाय सा।

