चांदनी
चांदनी
प्रकृति की छटा निराली है
कभी सूरज की लालिमा से सिंदूरी सी दिखती है
कभी स्वर्णिम सी हो जाती है
संध्या में चांद की चमक से
आकाश में चांदनी बिखर जाती है
चारों ओर शीतल पवन बहने लगती है
सुमंद सुगंध सी, मन को हर्षित करती है
तरू भी झूम झूम कर खुशी प्रकट करते हैं
पंछी अपने नीडों में विश्राम करते हैं
सभी दिशाएं मानो आनंद मग्न हो जातीं हैं
प्रेमी युगलों के लिए यादगार घड़ियां बन जाती हैं
नदि की तरंगों पर चांदनी जब पड़ती है
श्वेत चुनर मानो प्रकृति तब ओढ़ लेती हो।