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Rajiv Jiya Kumar

Abstract Romance Classics

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Rajiv Jiya Kumar

Abstract Romance Classics

❣चाँदनी की बनी तुम।~~~~~~~~~~

❣चाँदनी की बनी तुम।~~~~~~~~~~

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बनी हो तुम चाँदनी की

सजे तारों के झुरमुट से

झलकता रूप यह तुम्हारा 

बस आमंत्रित करता है

पिघल गुम तुम में हो जाए 

बचे न फिर कभी कोई 

यह अस्तित्व,रंग जो हमारा है।।


सजाया है अपनी निगाह से

तुम्हारी राह को सनम हमने

मेरे आँगन की विभा तुुम हो

कई जन्मों की संंगिनी तुुम हो

बसी हर आहट पर तुुम सनम

सहारा तेेेरी बाहों का ही तो है।।


तुम सुुहानी रात की मेेेरी रागिनी

गुुुनगुन धङकन मेें करती हो

तुम्हारे कुछ कहने की रूनझुन भी

यही ईक बात पल पल कहती है

बनाया मालिक तुमको फुर्सत से

तुम्हीं सनम,सजन मेेेरे मेरी भामिनी हो।।


 महक उठा सेहरा यह सारा है

 तुम्हारे आने के पहले जान लो

 रहा था पसरा विराना अब तक यहाँ

 

पहर यह ठिठक थम कर रहे

 दुुआ बस इक यह हमारा है,

 बनी हो चाँदनी की तुम सनम

 कहाँ कोई दूसरा तुमसे प्यारा है।।


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