चालाकी और चतुराई
चालाकी और चतुराई


आओ यारों तुमसे पूछूं एक सच्ची सीधी बात,
देना होगा बस जवाब तुम्हें उसका साथ-साथ,
एक पलड़े में गर चतुराई और एक में चालाकी,
किसका पलड़ा भारी किसका नीचे आना बाकी।
चालाकी का कद छोटा तो सर पर है चढ़ जाती,
चतुराई है लंबी तो सबको नजर दूर से है आती,
चालाकी और कुटिलता की है इक पक्की जोड़ी,
तोड़ सकोगे उसको भी जो समझ दिखाई थोड़ी।
जाल बिछाओ अगले को फिर उसमें फंसाओ,
गिरा के उसको तुम नीचे खुद आगे बढ़ जाओ,
योजना चालाकी की कुटिलता में बेहतरीन है,
याद रखो आगे तुम्हारे भी खोखली जमीन है।
तुमसे आगे जो खड़ा है मेहनत से आगे बढ़ा है,
सूझ-बूझ लगन से देखो उसने खुद को गढ़ा है,
सीखो जानो उससे ये समझदारी की पुकार है,
सीख समझ आगे बढ़ना समय की दरकार है।
समझ और चतुराई को लेकर जो चलते हैं साथ,
सारस से ऊंचे उड़ते ना मलते लोमड़ जैसे हाथ,
सच में चालाकी और चतुराई में ये अंतर महीन है,
समझे गर ये बात सीधी होंगे सफल हमें यकींन है।